Tuesday, August 11, 2020

पथिक प्रेम का

पथिक प्रेम का आता जग में।
पथिक प्रेम का जाता जग से।।
लेकिन क्या तुम गौर किए हों।
क्या वो कुछ ले जाता जग से।।
वैसे ये नश्वर जीवन है।
प्रेम बिना नीरस जीवन है।।
अद्भुत लीला है सृष्टि की।
सारी कीड़ा है दृष्टि की।।
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।
लेकिन होगी निज जीवन की।।
न कुछ लेना तुझको जग से।
न कुछ देना तुझको जग को।।
फिर भी तृप्त नहीं होता मन।
पथिक प्रेम बिन नीरस जीवन।।
करुन लहू जो दौडे रग में।
पथिक प्रेम का आता जग में।।